आज अश्लीलता दिन-प्रतिदिन अपनी चरम सीमा को लाघंते हुए बाजार तक पहुंच गया है। इस अश्लीलता को सभ्य समाज ने कभी भी मान्यता प्रदान नहीं की। परंतु वो ही समाज अब धीरे-धीरे उसका समर्थन करने लगा है। इसका मूल कारण कुछ भी हो सकता है, चाहे मजबूरी कहें या वक्त की मांग। समर्थन तो दे दिया है।
यह बात सही है कि जब से निजी चैनलों का आगमन हुआ तब से इसमें वृद्धि हुई है, और इस वृद्धि में तीव्रता इंटरनेट ने ला दी है। ...पहले अश्लीलता लुके-छिपे बहुत कम संख्या में अश्लील साहित्यों में प्रकाशित होती थी। परंतु टी.वी. और इंटरनेट ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं। इस मुखरता और आर्थिकी करण ने अश्लीलता को बाजार की दहलीज तक पहुंचा दिया है। जो आज पूंजी कमाई का सबसे आसान जरीया बन चुका है। अश्लीलता के इस धंधे में छोटे-से-छोटे अपराधियों से लेकर, बडे़-से बडे़ माफियाओं, बाहुवलियों, समाज के सभ्य बुद्धजीवियों और-तो-और समाज को आईना दिखाने वाला मीडिया भी उतर चुका है। क्योंकि मीडिया भी इस बाजार की चकाचैंध से अपने आपको बचा नहीं सका। मीडिया में प्रकाशित विज्ञापन हो या फिर चैनलों में प्रसारित खबरें? अश्लीलता पूरी तरह साफ देखी जा सकती है। वहीं मीडिया यह कहकर अपना पल्ला झांड देता है, कि जो बिकता है हम वही दिखाते हैं। बिकने का क्या है? आज हर चीज बिकाऊ हो चुकी है।
मिर्ज़ा गालिब़ ने ठीक ही कहा था- ‘‘हमको मालूम न था क्या कुछ है बेचने को घर में,
ज़र से लेकर ज़मी तक सब कुछ बिकाऊ है।’’
उसी तर्ज पर मीडिया विज्ञापनों और खबरों को और गरमाता जा रहा है। जिससे उनके चैनलों की आमदनी में इजाफा हो सके। इस गरमाहट के बाजार का मुख्य कारण कम व्यय में अधिक आमदनी भी है। जिससे इस बाजार में हर कोई आने की होड़ में दिखाई दे रहा है।
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