देश के जवान शहीद क्यों हो रहे हैं?
सरकार की नीतियां पूरी तरह से फ़ेल रही है , भारत में मोर्चे पर मारे जा रहे जवानों और अफ़सरों की जान की कीमत इतनी ही है कि शहीद शहीद करने का एक ढोंग सा होता जा रहा है। मंत्री जाते हैं, सम्मान राशि दी जाती है और टीवी पर कवर होता है। ये तो होना ही चाहिए बल्कि इससे भी ज़्यादा होना चाहिए। मगर शहादत के सम्मान का यह मतलब नहीं कि हम नीतियों पर सवाल न उठायें। उनकी मौत किसकी ग़लती से हुई, उस पर सवाल न करें। कई बार लगता है कि ये शहीद शहीद इसलिए भी होता है ताकि नीतियों और ग़लत नीतियों पर सवाल न उठे।
हमें हमारे घर मे "वो" शर्मिन्दा करते रहते हैं!— Ravi Shankar Yadav (@RaviSYSpeaks) May 2, 2017
मरे हुए जख्मों को फिर फिर जिन्दा करते रहते हैं!#ModiWeakestPMever
ज़ाहिर है हम सब कुछ स्लोगन में बदल देने में यकीन रखते हैं। स्लोगन आ गया
चलो मान लो काम हो गया। सिर्फ शहीद-शहीद करना शहादत का सम्मान नहीं है।
कड़ी निंदा और कड़ी कार्रवाई से आगे बात होनी चाहिए। सिर्फ यह बोल देना या
दिखाने के लिए दो चार साहसिक कार्रवाई कर देने से यह दावानल रूकने वाला
नहीं है। अब सब कुछ टीवी के लिए हो रहा है। एकाध कार्रवाई ऐसी कर दी जाएगी
जिसे लेकर देश झूम जाएगा, उसके बाद फिर वही स्थिति बन जाती है। सर्जिकल
स्ट्राइक का कितना तमाशा बनाया गया, मिनट भर में इसे टीवी और रैलियों में
ले जाया गया। अब कोई बात ही नहीं कर रहा है कि हमारी सीमा में सर्जिकल
स्ट्राइक कैसे हो रही है। कैसे आतंकी सैन्य शिविरों पर या उसके आस-पास हमला
कर दे रहे हैं। हमें पूछना चाहिए कि आखिर हमारे जवान शहीद क्यों हो रहे
हैं। अफसर क्यों मारे जा रहे हैं। सवाल करने का मतलब यह नहीं कि आप सेना या
सरकार को कमतर करते हैं, इससे तो सरकारों की जवाबदेही बेहतर होती है।
आख़िर जिसका बेटा मारा गया है वो भी समझ रहा है कि क्या गड़बड़ी हो रही है।
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