राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक नव संवतसर
नये विक्रम संवत (2068) के शुभारम्भ पर आप सभी को बहुत-बहुत मंगल कामनाएँ ।
एक बार फिर अधिकांश भारतवासी, हमारी सरकार, हमारा टेलीविजन भारतीय नववर्ष के आगमन से अनजान से दिखाई दे रहे है। मैकालेप्रणीत शिक्षा पद्वति के ढ़ांचे में पले- बढ़े ये काले अंग्रेज सदैव पाश्चात्य नव वर्ष का स्वागत करने की तैयारी करते रहने में अपनी शान समझते हैं। बड़े-बड़े होटलों में हजारों रुपये प्रति व्यक्ति खर्च करके देश का एक कुलीन वर्ग सीटें रिजर्व कराता है। पाश्चात्य नववर्ष पर करोड़ों ग्रीटिंग कार्ड भेजे जाते हैं। हैपी न्यू ईयर के बैनर, होर्डिंग, पोस्टर व कार्डों के साथ अल्कोहल की दुकानों की भी चांदी कटने लगी है। कहीं कहीं तो जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाएं दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं और मनुष्य मनुष्यों से तथा गाडिय़ां गाडिय़ों से भिडऩे लगती हैं। रात-रात भर जागकर नया साल मनाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी खुशियां एक साथ आज ही मिल जाएंगी। तथाकथित सभ्य समाज जाम से जाम टकरा-खनका कर मदहोशी की हालत में विदेशी नववर्ष की शुभकामनाएं देता है। इनके देखा-देखी आम आदमी भी पीछे नहीं रहता। टीवी के सामने बैठ कर मध्य रात्रि के अंधेरे में ही नया दिन मनाता है और कुछ मनचले सड़कों पर पटाखे छोड़कर, नशे में धुत होकर घर के दरवाजे खटखटाते है। हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्कृतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया। आजादी के बाद हमने परतंत्रता के बहुत से चिह्न हटाए, सड़कों के नामों का भारतीयकरण किया, पर संवत् और राष्ट्रीय कैलेंडर के विषय में हम सुविधावादी हो गए, हमें विस्मृति रोग ने जकड़ लिया। इसके लिए यह तर्क दिया जा सकता है कि अब जब संसार के अधिकतर देशों ने समान कालगणना के लिए ईस्वी सन स्वीकार कर लिया है तो दुनिया के साथ चलने के लिए हमें भी इसका प्रयोग करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि हमने सुविधा को आधार बनाकर राष्ट्रीय गौरव से समझौता कर लिया है और यह भी भुला दिया कि काम चलाने और जश्न मनाने में बहुत अंतर है। दो हजार वर्ष पहले शकों ने सौराष्ट्र और पंजाब को रौंदते हुए अवंतिका पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। विक्रमादित्य ने राष्ट्रीय शक्तियों को एक सूत्र में पिरोया और शक्तिशाली मोर्चा खड़ा करके ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की। थोड़े समय में ही इन्होंने कोंकण, सौराष्ट्र, गुजरात और सिंध भाग के प्रदेशों को भी शकों से मुक्त करवा लिया। वीर विक्रमादित्य ने शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी। इसी सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर भारत में विक्रमी संवत प्रचलित हुआ। सम्राट पृथ्वीराज के शासनकाल तक इसी संवत के अनुसार कार्य चला। इसके बाद भारत में मुगलों के शासनकाल के दौरान सरकारी क्षेत्र में हिजरी सन चलता रहा। इसे भाग्य की विडंबना कहें अथवा स्वतंत्र भारत के कुछ नेताओं का अनुचित दृष्टिकोण कि सरकार ने शक संवत् को स्वीकार कर लिया, लेकिन शकों को परास्त करने वाले सम्राट विक्रमादित्य के नाम से प्रचलित संवत् को कहीं स्थान न दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नवम्बर 1952 में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गई। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। किन्तु, तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलेंडर को ही सरकारी कामकाज हेतु उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में स्वीकार कर लिया गया। विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानी संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मंडल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं। यह सच है कि भारतवासी अपने महापुरुषों के जन्मदिन एवं त्यौहार विक्रमी संवत् की तिथियों के अनुसार ही मनाते हैं। जन्मकुंडली तथा पंचांग भी इसी आधार पर बनते हैं। उदाहरण के लिए रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा को और सर्दी का आगमन शरद पूर्णिमा को मनाते है। गुरुनानक देव का जन्मदिवस कार्तिक पूर्णिमा, श्रीकृष्ण का भादों की अष्टमी, श्रीरामचंद्र का चैत्र की नवमी को ही मनाया जाता है। इसी प्रकार बुद्ध पूर्णिमा, पौष सप्तमी और दीपावली के लिए कार्तिक अमावस्या सभी जानते हैं, किंतु न जाने क्यों अपनी तथा अपने बच्चों की जन्मतिथि ईसवी सन के अनुसार हम मनाते हैं। 31 दिसंबर की आधी रात को नववर्ष के नाम पर नाचने वाले आम जन को देखकर तो कुछ तर्क किया जा सकता है, पर भारत सरकार को क्या कहा जाए जिसका दूरदर्शन भी उसी रंग में रंगा श्लील-अश्लील कार्यक्रम प्रस्तुत करने की होड़ में लगा रहता है और राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री पूरे राष्ट्र को नववर्ष की बधाई देते हैं। भारतीय सांस्कृतिक जीवन का विक्रमी संवत् से गहरा नाता है। नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, जिसे विक्रम संवत् का नवीन दिवस भी कहा जाता है। राष्ट्रीय चेतना के ऋषि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था - यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहनेवाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है। यह दिन हमारे मन में यह उदघोष जगाता है कि हम पृथ्वी माता के पुत्र हैं, सूर्य, चन्द्र व नवग्रह हमारे आधार हैं प्राणी मात्र हमारे पारिवारिक सदस्य हैं। तभी हमारी संस्कृति का बोध वाक्य ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ का सार्थक्य सिद्ध होता है। ध्यान रहे कि सामाजिक विश्रृंखलता की विकृतियों ने भारतीय जीवन में दोष एवं रोग भर दिया, फलतरू कमजोर राष्ट्र के भू भाग पर परकीय, परधर्मियों ने आक्रमण कर हमें गुलाम बना दिया। सदियों पराधीनता की पीड़ाएं झेलनी पड़ी। पराधीनता के कारण जिस मानसिकता का विकास हुआ, इससे हमारे राष्ट्रीय भाव का क्षय हो गया और समाज में व्यक्तिवाद, भय एवं निराशा का संचार होने लगा। जिस समाज में भगवान श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध महावीर, नानक व अनेक ऋषि-मुनियों का आविर्भाव हुआ। जिस धराधाम पर परशुराम, विश्वामित्र, वाल्मिकी, वशिष्ठ, भीष्म एवं चाणक्य जैसे दिव्य पुरुषों का जन्म हुआ। जहां परम प्रतापी राजा-महाराजा व सम्राटों की श्रृंखला का गौरवशाली इतिहास निर्मित हुआ उसी समाज पर शक, हुण, डच, तुर्क, मुगल, फ्रांसीसी व अंग्रेजों जैसी आक्रान्ता जातियों का आक्रमण हो गया। यह पुण्यभूमि भारत इन परकीय लुटेरों की शक्ति परीक्षण का समरांगण बन गया और भारतीय समाज के तेजस्वी, ओजस्वी और पराक्रमी कहे जाने वाले शासक आपसी फूट एवं निज स्वार्थवश पराधीन सेना के सेनापति की भांति सब कुछ सहते तथा देखते रहे। जो जीत गये उन्होनें हम पर शासन किया और अपनी संस्कृति अपना धर्म एवं अपनी परम्परा का विष पिलाकर हमें कमजोर एवं रुग्ण किया। किन्तु इस राष्ट्र की जिजीविषा ने, शास्त्रों में निहित अमृतरस ने इस राष्ट्र को मरने नहीं दिया। भारतीय नवसम्वत के दिन लोग पूजापाठ करते हैं और तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। लोग इस दिन तामसी पदार्थों से दूर रहते हैं, पर विदेशी नववर्ष के आगमन से घंटों पूर्व ही मांस मदिरा का प्रयोग, अश्लील-अश्लील कार्यक्रमों का रसपान तथा बहुत कुछ ऐसा प्रारंभ हो जाता है जिससे अपने देश की संस्कृति का रिश्ता नहीं है। विक्रमी संवत के स्मरण मात्र से ही विक्रमादित्य और उनके विजय अभिमान की याद ताजा होती है, भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा होता है, जबकि ईसवी वर्ष के साथ ही गुलामी द्वारा दिए गए अनेक जख्म हरे होने लगते हैं। मोरारजी देसाई को जब किसी ने पहली जनवरी को नववर्ष की बधाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया था- किस बात की बधाई? मेरे देश और देश के सम्मान का तो इस नववर्ष से कोई संबंध नहीं। यही हम लोगों को भी समझना और समझाना होगा।ऐतिहासिक महत्व
1. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन: आज से एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
2. विक्रमी संवत का पहला दिन: उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, न भिखारी हो साथ ही जो चक्रवर्ती सम्राट हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2067 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
3. प्रभु राम का राज्याभिषेक दिवस: प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या आने के बाद राज्याभिषेक के लिए चुना।
4. नवरात्र स्थापना: शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
5. गुरु अंगददेव प्रगटोत्सव: सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्मदिवस।
6. आर्य समाज स्थापना दिवस: समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
7. संत झूलेलाल जन्म दिवस: सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस: विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
9. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन: 5111 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
10. डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार जन्म दिवस, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक थे।
प्राकृतिक महत्व
1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारंभ यानी किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है।
क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके? आइये! विदेशी को फेंक स्वदेशी अपनाएं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनाएं।
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happy new year to all of us. VIKRAM sanwant is still used, that is in our blood.
जवाब देंहटाएंthis happy new year is in addvance, that is on
जवाब देंहटाएं4th of april.
यादव जी, आप को नमन, आप हमारी मरती हुई संस्कृति में यूं ही प्राण डालते रहें. ईसाई सन से भी सत्तावन वर्ष पहले हमारी नियमित और किसी सम्राट द्वारा स्वीकृत काल गणना प्रारम्भ हो गयी थी, लेकिन हमारा दुर्भाग्य कि हमारे लोगों ने ही हमारी संस्कृति को मारने का काम किया..
जवाब देंहटाएंShubkamnayen aapko bhi..... Apki baat se sahmat hun...
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