13 अप्रैल सन् 1919 की वह रक्तरंजित बैसाखी
13 अप्रैल सन् 1919 की वह रक्तरंजित बैसाखी
13 अप्रैल सन् 1919 के घाव अस्सी वर्ष बाद भी नहीं भर पाये हैं। 1999 वाले वर्ष में ब्रिटेन की महारानी के भारत आगमन पर जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के लिये क्षमा मांगने की मांग से इन घावों के आज भी खुले होने का अहसास होता है। अमृतसर के विश्वविख्यात जलियावाला बाग की चूहेदानी में फंसा कर मारे गये चार सौ से अधिक निर्दोष नागरिकों और हजारों घायलों का खून स्वयं को सभ्य कहने वाली अंग्रेज जाति के ललाट पर स्थायी कलंक बन कर रह गया। दूसरी ओर भारतीयों के लिये यह स्थान तीर्थस्थल जैसी गरिमा प्राप्त कर गया। जहाँ प्रतिदिन सैंकड़ों स्त्री पुरुष इन अनाम शहीदों को अपनी मौन श्रद्धांजलि प्रदान करते हैं। इस हत्याकाण्ड की पृष्ठभूमि में सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा डिफेन्स ऑफ इण्डिया एक्ट ‘भारत प्रतिरक्षा कानून’ लागू करना था। इस कानून के अन्र्तगत सरकार युद्ध के कुशल परिचालन में किसी भी प्रकार का विघ्न या बाधा डालने वाले को गिरफ्तार या नजरबन्द कर सकती थी। महायुद्ध की समाप्ति पर इस कानून के निरर्थक हो जाने पर सरकार ने इस कानून की जगह नया कानून बनाने के सुझाव पर सर जेम्स रॉलट की अध्यक्षता में समिति बनाई। इस समिति ने अपनी रिर्पोट में क्रिमिनल लॉ एमेन्डमेन्ट एक्ट के नाम से दो कानूनों के मसौदे सरकार क समानेे पेश किये। इनमें डिफेन्स ऑफ इण्डिया एक्ट के अन्र्तगत अदालत में मुकदमा चलाये बगैर नजरबन्द करने के अधिकार को स्थायी करने का प्रस्ताव था। इसके अनुसार केन्द्रीय असेम्बली में कानून के दो मसौदे पेश किये गये। इनमें से पहला कानून मार्च 1919 के तीसरे सप्ताह में पारित हो गया। महात्मा गाँधी ने रॉलट समिति की सिफारिशों को कानूनी रूप प्रदान करने की स्थिति में सत्याग्रह आन्दोलन करने की धमकी दे रखी थी। इन कानूनों के बिल केन्द्रीय असेम्बली में पेश करने का भारतीय सदस्यों ने कड़ा विरोध किया। पंडित मदन मोहन मालवीय ने इनके विरोध में साढ़े चार घण्टे लम्बा भाषण दिया जो ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है। रॉलट एक्ट का विरोध करने के लिये गांधी जी ने 30 मार्च को उपवास करने देश भर में सभाएं करने और जुलूस निकालने का आह्वान किया था। बाद में यह तारीख बदल कर 6 अप्रेल कर दी गई। किन्तु ठीक समय पर सूचना न पहुँचने के कारण दिल्ली में 30 मार्च को ही हड़ताल हुई और जुलूस निकला। इसका नेतृत्व स्वामी श्रद्धानन्द कर रहे थे। फिर गांधी जी की घोषणा के अनुसार 6 अप्रैल को सारे देश में हड़तालें और प्रदर्शन हुए। गांधी जी को बम्बई से पंजाब जाते समय गिरफ्तार करके अहमदाबाद भेज दिया गया। 10 अप्रैल को सवेरे अमृतसर में जिला मजिस्ट्रेट ने कांग्रेस के नेता डॉ0 सैफुद्दीन किचलू और डॉ0 सत्यपाल को अपने बंगले पर बुलाया और गिरफ्तार करके चुपचाप किसी अज्ञात स्थान पर भेज दिया। इस खबर से शहर में सनसनी फैल गयी। उनका पता पूछने के लिये जिला मजिस्ट्रेट के बंगले की तरफ जाने वाली भीड़ पर फौज ने गोलियां चलाई् जिससे कई लोग हताहत हुए। भीड़ ने मृत और घायल लोगों को लेकर जुलूस निकाला। रास्ते में उत्तेजित भीड़ ने नेशनल बैंक में आग लगा कर उसके अंग्रेज मैनेजर की हत्या कर दी। भीड़ ने पांच अंग्रेजों को मार डाला और बैंक रेलवे गोदाम आदि कई सार्वजनिक ईमारतों में आग लगा दी। परिणामस्वरूप सरकार ने 10 अप्रैल को अमृतसर में फौजी कानून लागू कर दिया। पंजाब में शक् सम्वत् का नया साल मेष संक्रान्ति 13 अप्रैल से शुरु होता है। उस दिन सिख सम्प्रदाय के लोग बसन्तोत्सव मनाते हैं। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर की घनी बस्ती के बीच स्थित जलियावाला बाग में शाम को सभा हो रही थी। सभा में बीस हजार लोगों के होने की सूचना पाकर जनरल डायर पचास गोरों और सौ देशी सिपाहियों के साथ वहां पहुंचा और बाग को जाने वाले एकमात्र तंग रास्ते को रोक दिया। भीड़ को तितर बितर होने की चेतावनी दिये बगैर ही उसने गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। उस समय हंसराज नामक व्यक्ति भाषण दे रहा था। अकस्मात् गोली चलने से अफरातफरी मच गई। जान बचाने के लिये भागते लोगों के बचने का एकमात्र रास्ता तो फौज ने रोक रखा था। वहीं से गोलियों की शक्ल में मौत बरस रही थी। डेढ़ सौ बन्दूकों से निकलती आग से बचने के लिये लोग पूरे बाग का हर कोनाग् पेड़ खम्गाल गये। बाग के चारों ओर ऊंचे मकान थे। जहां से निकलना असंभव था। गोलियों से बचने के लिये लोग बाग स्थित कुएं में कूदने लगे। ऊपर से गिरते आदमी नीचे वाले को डुबा जाते थे। कुछ ही देर में कुआं लोगों की लाशों से भर गया। उधर बन्दूकें अब भी आग उगल रही थीं। सिपाहियों के पास आखिरी गोली रहने तक फायरिंग चलती रही। कुल सौलह सौ फायर किये गये जिनसे चार सौ लोग मर गये और कई हजार घायल हुए। भीषण हत्याकाण्ड के बाद भी जनरल डायर नहीं पसीजा। भारतीयों को पूरी तरह सबक सिखाने पर आमादा डायर ने घायलों की चिकित्सा तो दूर उन्हें पानी तक नहीं पिलाने दिया। नृशंस हत्याकाण्ड के बारे में जान कर अंग्रेज सरकार भी दहल गई। घटना को दबाने के लिये 15 अप्रैल को पूरे पंजाब प्रान्त में फौजी शासन लागू कर दिया गया। इसके अन्र्तगत दो से अधिक लोगों को साथ चलने की रोक लगा दी गई। लोगों के वाहन छीन लिए गए। अमृतसर की एक गली में होकर गुजरने वालों को पेट के बल रेंगने पर मजबूर किया गया था इससे इस गली का नाम क्रॉलिंग लेन रेंगन गली पड़ गया। करीब एक हजार लोगों पर फौजी मुकदमे चले जिनमें फांसी और काला पानी की सजाएं सुनाई गईं। इनमें 51 को फांसी 46 को कालापानी 2 को दस दस वर्ष 79 को सात सात वर्ष 13 को तीन तीन वर्ष और कुछ को विभिन्न अवधि की कैद सुनाई गई। बैंतों की सजा प्राप्त सैंकड़ों लोगों को टिकटिकियों पर बांध कर पीटा गया। रेलों में तीसरे दर्जे के टिकट बन्द कर दिये जिससे कोई आदमी न पंजाब जा सकता था और न वहां से निकल सकता था। इस समय सर माईकेल ओज् डायर पंजाब का गर्वनर था। विश्व में भी इस हत्याकाण्ड की गूंज फैलने पर सरकार ने जांच के लिये सितम्बर 1919 में पंजाब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सर जार्ज हंटर की अध्यक्षता में तीन जजों की कमेटी बना दी। किन्तु सरकार द्वारा इन्डेसिटी एक्ट नामक कानून बना कर हत्याकाण्ड के लिये जिम्मेदार अफसरों को माफी दे देने के कारण कांग्रेस ने इस कमेटी का बहिष्कार किया। हंटर कमेटी ने जनरल डायर और दूसरी जगहों पर गोलियां और बम बरसाने वाले फौजी अफसरों से जिरह की। कमेटी के सदस्य जस्टिस रेनकिन ने जनरल डायर से पूछा आपने जो कुछ किया वह क्या एक प्रकार का भय प्रदर्शन नहीं था?ज्ज् डायर का उत्तर था च्च् नहीं वह भय प्रदर्शन नही भयानक कर्तव्य था जिसका मैं ने पूरी तरह पालन किया था। मैं उसे दयापूर्ण कार्य मानता हूँ । मैं ने सोचा कि मैं खूब गोलियां चलवाऊं और इतनी जोर से चलवाऊं कि फिर किसी को इस तरह गोलियां नहीं चलानी पड़े। मेरे ख्याल से यह संभव था कि बिना गोलियां चलवाये ही भीड़ को तितर बितर कर दिया जाता। लेकिन ऐसा करने पर वे लोग वापस आ जाते और मेरी हंसी उड़ाते और मैं बेवकूफ बन जाता।ज्ज एक गाँव में किसानों की भीड़ पर बम बरसाने वाले लेफ्टिनेंट डॉडकिन्स ने अपने बयान में कहा च्च् मैं ने एक खेत में बीस किसानों को देखा और उन पर मशीनगन से गोलियां चला कर उन्हें भगा दिया। एक मकान के सामने लोगों का झुण्ड देख कर उन पर बम गिरा दिया। ज्ज् मेजर कार्बी ने बयान दिया च्च् एक गांव में लोगों की भीड़ दौड़ी जा रही थी। उसे तितर बितर करने के लिये पहले तो उन पर और फिर गांव के झौंपड़ों पर भी मशीनगन से गोलियां चलाईं। मेरा हवाईजहाज दो सौ फुट की ऊंचाई पर था इसलिये मैं ने गांव में और फिर पास के शहर में उन लोगों पर बम बरसाए जो भागने की कोशिश कर रहे थे।ज्ज् फौजी कानून के तहत अत्याचार करने वाले कई फौजी अफसरों ने भी अपनी कार्यवाहियों को उचित बताया। कांग्रेस के बहिष्कार के कारण कमेटी के सामने विरोध का पक्ष रखने वाला कोई नहीं था। इसलिये कमेटी ने अपनी रिर्पोट में सारे मामले पर लीपापोती कर दी। आंसू पौंछने के लिये यह जरूर कहा कि यह हत्याकाण्ड जरूरत से ज्यादा था और उसे रोका जा सकता था। उधर पंजाब के गर्वनर सर माईकेल ओज्डायर ने डायर को तार भेजा था दृष्टि आपकी कार्यवाही उचित थी। गर्वनर उसकी सराहना करते हैं। सर माईकेल ओज्डायर के रिटायर होने के बाद इंग्लैण्ड में सरदार उधमसिंह ने उसकी हत्या कर हत्याकाण्ड का आंशिक प्रतिशोध लिया था। जलियावाला हत्याकाण्ड के बाद 20 और 21 अप्रैल को कांग्रेस महासमिति की बैठक हुई। किन्तु पंजाब आने जाने और खबरों पर लगी रोक के कारण वहां के हालात की पूरी जानकारी नहीं मिल सकी। फिर इलाहाबाद में 8 जून की बैठक में महासमिति ने पंजाब की समस्त दुर्घटनाओं की जांच के लिये अपनी ओर से कमेटी नियुक्त करके उसे इंगलैण्ड और भारत में कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार भी दिया गया। महात्मा गांधी मोतीलाल नेहरू सी एफ एन्ड्रूज स्वामी श्रद्धानन्द विठ्ठल भाई पटेल मदन मोहन मालवीय और के. संथानम सचिव इसके सदस्य थे। अनवरत बाधाओं के बाद कमेटी ने अत्याचारों की साक्षियों के साथ कुछ फोटो भी जमा किये। लेकिन सरकार को भनक लग गई और रिर्पोट प्रकाशित होते ही उसकी सारी प्रतियां जब्त कर ली गईं। और यह हत्याकाण्ड न्याय के अभाव में एक भयावह स्मृति बन कर रह गया।
13 अप्रैल सन् 1919 के घाव अस्सी वर्ष बाद भी नहीं भर पाये हैं। 1999 वाले वर्ष में ब्रिटेन की महारानी के भारत आगमन पर जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के लिये क्षमा मांगने की मांग से इन घावों के आज भी खुले होने का अहसास होता है। अमृतसर के विश्वविख्यात जलियावाला बाग की चूहेदानी में फंसा कर मारे गये चार सौ से अधिक निर्दोष नागरिकों और हजारों घायलों का खून स्वयं को सभ्य कहने वाली अंग्रेज जाति के ललाट पर स्थायी कलंक बन कर रह गया। दूसरी ओर भारतीयों के लिये यह स्थान तीर्थस्थल जैसी गरिमा प्राप्त कर गया। जहाँ प्रतिदिन सैंकड़ों स्त्री पुरुष इन अनाम शहीदों को अपनी मौन श्रद्धांजलि प्रदान करते हैं। इस हत्याकाण्ड की पृष्ठभूमि में सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा डिफेन्स ऑफ इण्डिया एक्ट ‘भारत प्रतिरक्षा कानून’ लागू करना था। इस कानून के अन्र्तगत सरकार युद्ध के कुशल परिचालन में किसी भी प्रकार का विघ्न या बाधा डालने वाले को गिरफ्तार या नजरबन्द कर सकती थी। महायुद्ध की समाप्ति पर इस कानून के निरर्थक हो जाने पर सरकार ने इस कानून की जगह नया कानून बनाने के सुझाव पर सर जेम्स रॉलट की अध्यक्षता में समिति बनाई। इस समिति ने अपनी रिर्पोट में क्रिमिनल लॉ एमेन्डमेन्ट एक्ट के नाम से दो कानूनों के मसौदे सरकार क समानेे पेश किये। इनमें डिफेन्स ऑफ इण्डिया एक्ट के अन्र्तगत अदालत में मुकदमा चलाये बगैर नजरबन्द करने के अधिकार को स्थायी करने का प्रस्ताव था। इसके अनुसार केन्द्रीय असेम्बली में कानून के दो मसौदे पेश किये गये। इनमें से पहला कानून मार्च 1919 के तीसरे सप्ताह में पारित हो गया। महात्मा गाँधी ने रॉलट समिति की सिफारिशों को कानूनी रूप प्रदान करने की स्थिति में सत्याग्रह आन्दोलन करने की धमकी दे रखी थी। इन कानूनों के बिल केन्द्रीय असेम्बली में पेश करने का भारतीय सदस्यों ने कड़ा विरोध किया। पंडित मदन मोहन मालवीय ने इनके विरोध में साढ़े चार घण्टे लम्बा भाषण दिया जो ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है। रॉलट एक्ट का विरोध करने के लिये गांधी जी ने 30 मार्च को उपवास करने देश भर में सभाएं करने और जुलूस निकालने का आह्वान किया था। बाद में यह तारीख बदल कर 6 अप्रेल कर दी गई। किन्तु ठीक समय पर सूचना न पहुँचने के कारण दिल्ली में 30 मार्च को ही हड़ताल हुई और जुलूस निकला। इसका नेतृत्व स्वामी श्रद्धानन्द कर रहे थे। फिर गांधी जी की घोषणा के अनुसार 6 अप्रैल को सारे देश में हड़तालें और प्रदर्शन हुए। गांधी जी को बम्बई से पंजाब जाते समय गिरफ्तार करके अहमदाबाद भेज दिया गया। 10 अप्रैल को सवेरे अमृतसर में जिला मजिस्ट्रेट ने कांग्रेस के नेता डॉ0 सैफुद्दीन किचलू और डॉ0 सत्यपाल को अपने बंगले पर बुलाया और गिरफ्तार करके चुपचाप किसी अज्ञात स्थान पर भेज दिया। इस खबर से शहर में सनसनी फैल गयी। उनका पता पूछने के लिये जिला मजिस्ट्रेट के बंगले की तरफ जाने वाली भीड़ पर फौज ने गोलियां चलाई् जिससे कई लोग हताहत हुए। भीड़ ने मृत और घायल लोगों को लेकर जुलूस निकाला। रास्ते में उत्तेजित भीड़ ने नेशनल बैंक में आग लगा कर उसके अंग्रेज मैनेजर की हत्या कर दी। भीड़ ने पांच अंग्रेजों को मार डाला और बैंक रेलवे गोदाम आदि कई सार्वजनिक ईमारतों में आग लगा दी। परिणामस्वरूप सरकार ने 10 अप्रैल को अमृतसर में फौजी कानून लागू कर दिया। पंजाब में शक् सम्वत् का नया साल मेष संक्रान्ति 13 अप्रैल से शुरु होता है। उस दिन सिख सम्प्रदाय के लोग बसन्तोत्सव मनाते हैं। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर की घनी बस्ती के बीच स्थित जलियावाला बाग में शाम को सभा हो रही थी। सभा में बीस हजार लोगों के होने की सूचना पाकर जनरल डायर पचास गोरों और सौ देशी सिपाहियों के साथ वहां पहुंचा और बाग को जाने वाले एकमात्र तंग रास्ते को रोक दिया। भीड़ को तितर बितर होने की चेतावनी दिये बगैर ही उसने गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। उस समय हंसराज नामक व्यक्ति भाषण दे रहा था। अकस्मात् गोली चलने से अफरातफरी मच गई। जान बचाने के लिये भागते लोगों के बचने का एकमात्र रास्ता तो फौज ने रोक रखा था। वहीं से गोलियों की शक्ल में मौत बरस रही थी। डेढ़ सौ बन्दूकों से निकलती आग से बचने के लिये लोग पूरे बाग का हर कोनाग् पेड़ खम्गाल गये। बाग के चारों ओर ऊंचे मकान थे। जहां से निकलना असंभव था। गोलियों से बचने के लिये लोग बाग स्थित कुएं में कूदने लगे। ऊपर से गिरते आदमी नीचे वाले को डुबा जाते थे। कुछ ही देर में कुआं लोगों की लाशों से भर गया। उधर बन्दूकें अब भी आग उगल रही थीं। सिपाहियों के पास आखिरी गोली रहने तक फायरिंग चलती रही। कुल सौलह सौ फायर किये गये जिनसे चार सौ लोग मर गये और कई हजार घायल हुए। भीषण हत्याकाण्ड के बाद भी जनरल डायर नहीं पसीजा। भारतीयों को पूरी तरह सबक सिखाने पर आमादा डायर ने घायलों की चिकित्सा तो दूर उन्हें पानी तक नहीं पिलाने दिया। नृशंस हत्याकाण्ड के बारे में जान कर अंग्रेज सरकार भी दहल गई। घटना को दबाने के लिये 15 अप्रैल को पूरे पंजाब प्रान्त में फौजी शासन लागू कर दिया गया। इसके अन्र्तगत दो से अधिक लोगों को साथ चलने की रोक लगा दी गई। लोगों के वाहन छीन लिए गए। अमृतसर की एक गली में होकर गुजरने वालों को पेट के बल रेंगने पर मजबूर किया गया था इससे इस गली का नाम क्रॉलिंग लेन रेंगन गली पड़ गया। करीब एक हजार लोगों पर फौजी मुकदमे चले जिनमें फांसी और काला पानी की सजाएं सुनाई गईं। इनमें 51 को फांसी 46 को कालापानी 2 को दस दस वर्ष 79 को सात सात वर्ष 13 को तीन तीन वर्ष और कुछ को विभिन्न अवधि की कैद सुनाई गई। बैंतों की सजा प्राप्त सैंकड़ों लोगों को टिकटिकियों पर बांध कर पीटा गया। रेलों में तीसरे दर्जे के टिकट बन्द कर दिये जिससे कोई आदमी न पंजाब जा सकता था और न वहां से निकल सकता था। इस समय सर माईकेल ओज् डायर पंजाब का गर्वनर था। विश्व में भी इस हत्याकाण्ड की गूंज फैलने पर सरकार ने जांच के लिये सितम्बर 1919 में पंजाब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सर जार्ज हंटर की अध्यक्षता में तीन जजों की कमेटी बना दी। किन्तु सरकार द्वारा इन्डेसिटी एक्ट नामक कानून बना कर हत्याकाण्ड के लिये जिम्मेदार अफसरों को माफी दे देने के कारण कांग्रेस ने इस कमेटी का बहिष्कार किया। हंटर कमेटी ने जनरल डायर और दूसरी जगहों पर गोलियां और बम बरसाने वाले फौजी अफसरों से जिरह की। कमेटी के सदस्य जस्टिस रेनकिन ने जनरल डायर से पूछा आपने जो कुछ किया वह क्या एक प्रकार का भय प्रदर्शन नहीं था?ज्ज् डायर का उत्तर था च्च् नहीं वह भय प्रदर्शन नही भयानक कर्तव्य था जिसका मैं ने पूरी तरह पालन किया था। मैं उसे दयापूर्ण कार्य मानता हूँ । मैं ने सोचा कि मैं खूब गोलियां चलवाऊं और इतनी जोर से चलवाऊं कि फिर किसी को इस तरह गोलियां नहीं चलानी पड़े। मेरे ख्याल से यह संभव था कि बिना गोलियां चलवाये ही भीड़ को तितर बितर कर दिया जाता। लेकिन ऐसा करने पर वे लोग वापस आ जाते और मेरी हंसी उड़ाते और मैं बेवकूफ बन जाता।ज्ज एक गाँव में किसानों की भीड़ पर बम बरसाने वाले लेफ्टिनेंट डॉडकिन्स ने अपने बयान में कहा च्च् मैं ने एक खेत में बीस किसानों को देखा और उन पर मशीनगन से गोलियां चला कर उन्हें भगा दिया। एक मकान के सामने लोगों का झुण्ड देख कर उन पर बम गिरा दिया। ज्ज् मेजर कार्बी ने बयान दिया च्च् एक गांव में लोगों की भीड़ दौड़ी जा रही थी। उसे तितर बितर करने के लिये पहले तो उन पर और फिर गांव के झौंपड़ों पर भी मशीनगन से गोलियां चलाईं। मेरा हवाईजहाज दो सौ फुट की ऊंचाई पर था इसलिये मैं ने गांव में और फिर पास के शहर में उन लोगों पर बम बरसाए जो भागने की कोशिश कर रहे थे।ज्ज् फौजी कानून के तहत अत्याचार करने वाले कई फौजी अफसरों ने भी अपनी कार्यवाहियों को उचित बताया। कांग्रेस के बहिष्कार के कारण कमेटी के सामने विरोध का पक्ष रखने वाला कोई नहीं था। इसलिये कमेटी ने अपनी रिर्पोट में सारे मामले पर लीपापोती कर दी। आंसू पौंछने के लिये यह जरूर कहा कि यह हत्याकाण्ड जरूरत से ज्यादा था और उसे रोका जा सकता था। उधर पंजाब के गर्वनर सर माईकेल ओज्डायर ने डायर को तार भेजा था दृष्टि आपकी कार्यवाही उचित थी। गर्वनर उसकी सराहना करते हैं। सर माईकेल ओज्डायर के रिटायर होने के बाद इंग्लैण्ड में सरदार उधमसिंह ने उसकी हत्या कर हत्याकाण्ड का आंशिक प्रतिशोध लिया था। जलियावाला हत्याकाण्ड के बाद 20 और 21 अप्रैल को कांग्रेस महासमिति की बैठक हुई। किन्तु पंजाब आने जाने और खबरों पर लगी रोक के कारण वहां के हालात की पूरी जानकारी नहीं मिल सकी। फिर इलाहाबाद में 8 जून की बैठक में महासमिति ने पंजाब की समस्त दुर्घटनाओं की जांच के लिये अपनी ओर से कमेटी नियुक्त करके उसे इंगलैण्ड और भारत में कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार भी दिया गया। महात्मा गांधी मोतीलाल नेहरू सी एफ एन्ड्रूज स्वामी श्रद्धानन्द विठ्ठल भाई पटेल मदन मोहन मालवीय और के. संथानम सचिव इसके सदस्य थे। अनवरत बाधाओं के बाद कमेटी ने अत्याचारों की साक्षियों के साथ कुछ फोटो भी जमा किये। लेकिन सरकार को भनक लग गई और रिर्पोट प्रकाशित होते ही उसकी सारी प्रतियां जब्त कर ली गईं। और यह हत्याकाण्ड न्याय के अभाव में एक भयावह स्मृति बन कर रह गया।
रवि शंकर यादव
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सलाम करता हूं ऊधम सिंह जी को... मेरे पास शब्द नहीं हैं उनकी प्रशंसा के लिये. एक ओर वे और एक ओर हम कृतघ्न लोग...
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