Header Ads

महा-शिवरात्रि की आप सब को शुभकामनाएँ !

जिस तांडव की आज के हिन्दू समाज को सब से जयादा जरुरत है क्योंकि 64 साल बीत गए हैं हमें विष पीते पीते.....
महाशिवरात्रि पर इस बार महाशिव संयोग बन रहा है।
शिवरात्रि पर सोमवार का दिन रहेगा। चतुर्दशी तिथि होगी, श्रावण नक्षत्र होगा, वरियान योग रहेगा  और वृष्टिï करण सिद्धि योग के साथ महाशिव संयोग बनेगा। महाशिव संयोग इससे पहले 57 वर्ष पूर्व 21 फरवरी 1955 को बना था।
 महा-शिवरात्रि की आप सब को शुभकामनाएँ! शिव स्वयं अजन्मा हैं, इसलिए आदिदेव हैं और साकार रूप में उन्हें देवाधिदेव महादेव कहा जाता है । वहीँ दूसरी ओर वे निराकार भी हैं इसलिए दिव्य ज्योति स्वरूप में तथा ज्योतिर्लिंग स्वरूप में भी पूजे जाते हैं । वैसे तो शिव का अर्थ ही कल्याण होता है तथापि शिव को त्रिदेवों में संहार कर्ता के रूप में भी जाना जाता है । वास्तव में परमात्मा शिव जी ने, ब्रम्हा जी की सृष्टि के निर्माण हेतु की गयी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयम से शक्ति तत्व को पृथक किया और फिर शिव शक्ति मय सृष्टि की रचना संभव हो सकी । इस प्रकार शिव और शक्ति एक दूसरे से अभिन्न होते हुए भी दो पृथक तत्वों के रूप में सम्पूर्ण सृष्टि में विद्यमान हैं और सृष्टि से परे भी हैं । शिव कालातीत हैं इसलिए महाकाल हैं । अति तुच्छ सेवा से भी शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं इसलिए आशुतोष हैं ।
शास्त्रों और पुरानों में अनेकों प्रसंग भरे पड़े हैं .....ऐसे ही एक प्रसंग की चर्चा कर रहा हूँ ......एक बार देवों और दानवों ने मिलकर कश्यप की पीठ का आधार , सुमेरु पर्वत की मथनी और नागराज वासुकी का रस्सी के रूप में उपयोग करते हुए समुद्र का मंथन किया । इस मंथन से अनेक दिव्य विभूतियाँ निकलीं उनमे अमृत भी निकला और कालकूट नामक अति तीक्ष्ण प्रभावशाली विष भी निकला इस विष को धारण करने की क्षमता न किसी देव में थी और न ही दानव में यदि इसकी एक बूंद भी नीचे गिरती तो पृथ्वी सहित पूरी सृष्टि ही समाप्त हो जाती अंत में सब मिलकर शिव जी के पास पहुंचे और सब कुछ सुनने के बाद शिव सृष्टि की रक्षा के लिए कालकूट को पीकर कंठ में ही धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और तब से शिव "नीलकंठ" कहलाये । इसके बाद अमृत सहित बाकी सभी दिव्य शक्तियों को अन्य देवताओं आयर दानवों ने आपस में बाँट लिया । इस प्रकार खुद जहर पीकर दूसरों को अमृत पिलाने वाला शिव के आलावा दूसरा और कौन हो सकता है । ऐसे परम उदार , परम कल्याणकारी और परम शांत, सदा ध्यान समाधि में लीन रहने वाले परम योगेश्वर परम त्यागी और भोले भाले देव होने से ही "भोले नाथ" कहे जाते हैं । जिसे सम्पूर्ण संसार घृणा से त्याग देता है उसे भी शिव प्रेम से अपनाते हैं इसलिए अनाथों के नाथ "पशुपति" कहलाते हैं ।
सच तो यह है कि शिव स्वयं अनंत हैं अतः शिव की महिमा भी अनंत है इसलिए कहा गया है कि .......
असित गिरी समं स्यात कज्जलं सिन्धुपात्रे ,
सुरतरु वर शाखा लेखनी पत्र मुर्बी,
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं ,
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ।
अर्थात -- हिमालय जैसे असीमित पर्वत के बराबर स्याही को समुद्र के पात्र में घोलकर देववृक्ष की शाखा की लेखनी बनाकर अनंत आकाश में यदि स्वयं ज्ञान की देवी सरस्वती भी कल्प कल्पांत तक यानी सदैव लिखती रहें तो भी शिव की महिमा का गुणगान लिखना संभव नहीं है ।
हर हर महादेव ...........ॐ नमः शिवाय
अकाल मृत्यु वो मरे जो कार्य करे चंडाल का काल उसका क्या करे
जो भक्त हो महाकाल का जय महाकाल..........

1 टिप्पणी:

Blogger द्वारा संचालित.