बांग्लादेश घुसपैठ एक बड़ा खतरा
हिन्दुस्तान के इस्लामीकरण का खतरा
बांग्लादेश विश्व के उन सबसे बड़े देशों में है जो लगातार शरणार्थियों को पैदा कर रहे हैं। इसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ रहा है। भारत में बांग्लादेशी मुसलमानों का आसानी से लगातार घुसपैठ होते रहने का मुख्य कारण भारत-बांग्लादेश की 4096 की.मी. लम्बी साझी सीमा है, राज्यवार स्थिति कुछ इस प्रकार पश्चिम बंगाल-2217 कि.मी., असम-262 कि.मी., मेघालय 443, कि.मी., त्रिपुरा-858 कि.मी., मिजोरम-318 कि.मी.। असम के पूर्व राज्यपाल ले. जनरल अजय सिंह ने कहा था कि 6000 बांग्लादेशी अवैध रूप से प्रतिदिन सीमा पार कर भारत में प्रवेश करते हैं। यह अवैध घुसपैठ प्रतिवर्ष लगभग 22 लाख होती है। बांग्लादेश की ओर से जारी अनियंत्रित और अवैध घुसपैठ ने पिछले कुछ दशकों से भारत के खिलाफ जनसांख्यिकीय हमले का रूप धारण कर लिया है। यह भारत की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा दोनों के लिए एक बड़ा खतरा है। इन घुसपैठियों में मुस्लिम और हिन्दुओं का अनुपात 4 1 का है। पिछले दस वर्षों में भारत बांग्लादेश सीमा के दोनो और करीब 3000 से ज्यादा मस्जिदें और मदरसे उग आए हैं। यहां कट्टरपंथीे मुसलमानों के बीच इस्लामिक विचारधारा का खुलेआम प्रचार किया जा रहा है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक समय आने पर पाकिस्तानी एजेंसियां इन कट्टरपंथियों का इस्तेमाल पूर्वोत्तर को काटने के लिए कर सकती हैं। आज देश के सभी राज्य इनकी की गिरफ्त में हैं। मुस्लिम घुसपैठियों की वजह से इन राज्यों में इस्लामीकरण का खतरा उत्पन्न हो गया है। आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन (आसू) जैसे सशक्त क्षेत्रीय संगठनों के द्वारा समय-समय पर किए गए विरोध के बावजूद इसका अब तक पर्याप्त समाधान होना शेष ही है। घुसपैठ से निपटने के लिए एक अधिनियम बनाया गया, अवैध प्रवासी (अधिकरणों द्वारा अवधारणा) अधिनियम, (आई.एम.डी.टी.) 1983 जिसे केंद्र तथा असम के सशक्त संगठन आसू के मध्य हुए असम समझौता 1984 के तहत पारित किया गया। असम को छोड़कर देश के बाकी राज्यों में विदेशी नागरिकों की पहचान कर देश निकाला देने का प्रावधान है। अवैध प्रवासी अधिनियम के अंतर्गत नागरिकता साबित करने का भार शिकायतकर्ता पर होता है जबकि विदेशी विषयक अधिनियम के अंतर्गत यह भार खुद उस व्यक्ति के ऊपर होता है जिसके ऊपर संदेह दर्ज है। यह अधिनियम 25 मार्च 1971 या उसके बाद आए बांग्लादेशी नागरिकों पर लागू होता है। विदेशी नागरिकों के पहचान तथा निष्कासन के संदर्भ में उक्त कानून अत्यधिक लचीला तथा कमजोर होने के कारण अवैध घुसपैठ रोकने की बजाय उस में मददगार ही साबित हुआ है। फलस्वरूप असम के कई जिलों की जनसंख्या का स्वरूप ही बदल गया है। जहां मूल असमी नागरिक बहूतायत में थे, वे अल्प संख्यक बन कर रह गए। अधिनियम अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त करने में अक्षम साबित हुआ। सन् 2003 में राज्य की असम गण परिषद सरकार ने केंद्र से इस अधिनियम को निरस्त करने की सिफारिश भी की थी लेकिन केंद्र ने राज्य सभा में अल्प मत का हवाला देकर ऐसा कर सकने में अक्षमता जाहिर की। जब कि केंद्र सरकार यदि चाहती तो दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर इस अधिनियम को निरस्त कर सकती थी। जैसा कि पोटा मामले में किया गया था। ज्ञातव्य है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने स्वयं यह बयान दिया था कि असम में 30 लाख से अधिक अवैध बांग्लादेशी विदेशी नागरिक रहते हैं। किन्तु कुछ दिनों बाद ही अल्पसंख्यकों के भड़क उठने के डर से उन्हें सफाई देनी पड़ी कि उक्त आंकड़ा केंद्र द्वारा प्रयोजित रिपोर्ट पर आधारित था। असम गण परिषद से लोक सभा के निर्वाचित सदस्य श्री सर्वानंद सोनोवाल द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायलय की तीन सदस्यीय खंडपीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश श्री आर.सी. लाहोटी, जी.पी. माथुर तथा श्री पी.के. बाल सुब्रमण्यम शामिल थे, ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा, ”अवैध प्रवासी बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर असम से बाहर निकालने में उक्त अधिनियम बहुत बड़ी बाधा है। सन् 2001 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल के दस, असम के तीन, मेघालय के तीन और त्रिपुरा के दो जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में 50 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि हुई है। कुछ क्षेत्र और जिले तो ऐसे हैं जहां दस वर्षों में जनसंख्या की वृध्दि की दर 200 प्रतिशत रही है। जबकि देश में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि 32.6 प्रतिशत ही रही है। मुस्लिम आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण इन जिलों में रहने वाले मूल निवासियों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है। पलायन कर चुके इन परिवारों के आंकड़े केंद्र और राज्य सरकार दोनों के पास हैं। लेकिन इनको जारी नहीं किया गया है। सिलीगुड़ी कॉरीडोर में इनका जबर्दस्त जमावड़ा है। यहां ऐसा नहीं है कि इन घुसपैठियों का इस्तेमाल सिर्फ बाहरी ताकतें ही कर रही हैं। भारत के अंदर कुछ राजनीतिक दल इनका लाभ उठाते हैं। इन घुसपैठियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण भारत के सीपीएम शासित राज्य हैं। इन राज्यों में घुसपैठियों का स्वागत राजनैतिक लाभ के लिए खुले हाथों से किया जाता है। यह दरियादिली चुनावों के साथ जोर पकड़ती है। कम्युनिस्टों को जिन क्षेत्रों में हार की आशंका होती है, उन क्षेत्रों में स्वतरू घुसपैठ बढ़ जाती है। पहचान पत्र तुरंत तैयार हो जाते हैं। राजनीतिक पार्टियां इनका खूब इस्तेमाल करती हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्तर पर इन घुसपैठियों को बाहर निकालने की कोशिश नहीं होती है और अगर कभी कोशिश की भी गई तो उसका विरोध किया जाता है। पश्चिम बंगाल का करीब 2,200 कि.मी. लंबा क्षेत्र बांग्लादेशी सीमा से लगा है। यहां 282 विधानसभा सीटों में 52 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का फैसला पूरी तरह से बांग्लादेशी घुसपैठिए करते हैं। जबकि अन्य 100 सीटों पर हार-जीत में ये निर्णाक भूमिका अदा करते हैं। आज देश के बड़े शहरों में इन घुसपैठियों की बस्तियां हैं। दिल्ली पुलिस के अनुसार, अकेले दिल्ली में 13 लाख बांग्लादेशी हैं। दिल्ली में सीलमपुर, जामा मस्जिद और यमुना बाजार आदि इनके गढ़ बन चुके हैं। बिहार के पूर्णियां, अररिया, किशनगंज, कटिहार आदि जिलों में इनकी जनसंख्या काफी ज्यादा है। यानी ये देश के भीतर तक फैले हैं। जहाँगीर खाँ के मुगलस्तान रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बांग्लादेश ने एक नक्शा प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार पूर्वि और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भारत क्षेत्र में घुसपैठ आदि के द्वारा एवं मुस्लीम जन्संख्या बढाकर इसे एक नया इस्लामी राज्य बना देना है। इसमें पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा और मध्य प्रदेश के क्षेत्र को सम्मिलित करने कि योजना है। इसलिये इन उपर्युक्त क्षेत्रो में बांग्लादेशी मुसलमानों का घुसपैठ प्रमुखता से है। इनकी बस्तियां भारतीय सीमाओं के भीतर बनी पाकिस्तानी सैन्य छावनियों के समान हैं। ये घुसपैठी सीमा पार से खतरनाक हथियारों के साथ देश में आतंक फैलाने के उद्देश्य से आते हैं। ये अपने साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए बड़ी मात्रा में नकली नोट भी लाते हैं। इनका प्रयोग आईएसआई जैसी एजेंसियां निर्बाध रूप से कर रही हैं। धर्म और राजनीति इस्लाम रुपी सिक्के के दो पहलू हैं। यह कथन आज भी उतना ही सही है जितना पहले था। यदि बांग्लादेशी मुसलमान अपने धर्मप्रेरित राजनैतिक उद्देश्यों के लिये भारत में घुसपैठ करते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि इस्लाम वस्तुतरू प्रारम्भ से ही एक राजनैतिक आन्दोलन रहा है। लेकिन वोट बैंक बनाने के चक्कर में कांग्रेस सहित तथाकथित धमनिरपेक्ष राजनीतिक दल एवं स्थानीय नेताओें ने अवैध बांग्लादेशियों को भारत में खासकर असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा एवं बिहार आदि राज्यों में उन्हें राशन कार्ड बनवाने व मतदाता सूची में शामिल करवाते हुए उन्हें वैधता प्रदान करने का कार्य किया है। वहीं स्थानीय लोगों ने सस्ते मजदूर और नौकर के मोह में पड़कर इन घुसपैठियों को अपने यहां रखकर स्वयं गंभीर संकट का दावत दे रहें है। 1971 के बाद से अब तक जिस तरह हमारे देश में बांग्लादेशी घुसपैठ हुई है उससे अद्वितीय राष्ट्रीय पहचान पत्र को लेकर एक शंका उत्पन्न होती है। क्योंकि यदि जनसंख्या रजिस्टर भरते समय बांग्लादेशी घुसपैठी प्रश्न 11 का उत्तर देते समय अपनी राष्ट्रीयता ‘भारतीय’ घोषित करता है तो उससे राष्ट्रीयता के बाबत कोई प्रश्न नहीं किया जाएगा और ना ही कोई सबूत मांगा जाएगा। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाते समय बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान को लेकर सरकार के पास न कोई स्पष्ट नीति है और ना ही राजनीतिक इच्छाशक्ति। ऐसे में वैसे बांग्लादेशी जो भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में भारत का नागरिक हो जायेगे। इन दिनों पूरे भारत में जनगणना का काम बड़ी तेजी से चल रहा है। 2011 की इस जनगणना के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) भी तैयार किया जा रहा है। बताते चलें कि इस राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के आधार पर ही प्रत्येक व्यक्ति को एक अनूठी पहचान संख्या ‘यूआईडी’ जारी किया जाएगा। उसके बाद इसे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के डाटाबेस में जोड़ा जाएगा। सत्तापक्ष यूपीए (कांग्रेस) सरकार की मंशा इस बात से भी उजागर होती है कि महामहिम राष्ट्रपति ने भी अपने अभिभाषण में राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की चर्चा की लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ पर चुप्पी साध गईं। वहीं दूसरी तरफ वित्ता मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी अपने बजट भाषण में राष्ट्रीय पहचान पत्र के लिए 1900 करोड़ रुपए का बजट वित्ताीय वर्ष 2010-11 के लिए आवंटित कर दिया। कितनी विडम्बना की बात है कि एक तरफ सरकार देश की जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में अक्षम है, वहीं दूसरी तरफ अद्वितीय पहचान पत्र के लिए सरकार इतनी बड़ी राशि खर्च कर रही है। आखिर इसकी उपयोगिता क्या है? इसका जबाव इस योजना के अध्यक्ष नंदन नीलकेणी इस प्रकार देते हैं, ”इस पहचान से गरीब लोग भी देश के आर्थिक विकास में सहयोग करेंगे। साथ ही पहचान संख्या स्कूल में बच्चों के नामांकन दिलाने में मदद करेगी। इस योजना में कारपोरेट घरानों का भी हाथ है। क्योंकि एनपीआर के डाटा का सिर्फ सरकारी उपयोग ही नहीं होगा बल्कि उसका बैंकिंग, बीमा और एड कंपनियां भी उपयोग करेंगी। बंगाल के गवर्नर टी.वी. राजेश्वर (18.3.96) एवं असम के गवर्नर एस. के. सिन्हा (1998) और अजय सिंह (15.5.2005) अपनी रिपोर्टं में घुसपैठ से उत्पन्न राजनैतिक समस्याओं एवं भारत की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित किया था मगर मुस्लिम वोट बैंक ने इन देशद्रोही गतिविधियों को भी उपेक्षित कर दिया। जबकि वास्तव में बांग्लादेशी घुसपैठ को, पार्टी हित से उपर उठकर, राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखण्डता की् दृष्टि से सोचना होगा और इस देशद्रोही गतिविधियों को समाप्त करने में हि भारत का हित है। पाकिस्तान में विदेशियों को घुसपैठ की 2 से 10 साल की सजा है। सऊदी अरेबिया ने 1994-1995 में एक लाख घुसपैठियों को निकाला जिसमें 27588 बांग्लादेशी मुस्लमान थे स्वयं बांग्लादेश ने 1,92,274 रोहिंगा वर्मी को अपने देश से निकाल बाहर किया चुका फिर भारत में रह रहे बांग्लादेशी को क्यों नही निकाला जा सकता। क्या मुस्लीम वोट बैंक राष्ट्रीय सुरक्षा से भी अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है? यदि हाँ ! तो देशद्रोहियों का वर्चस्व एवं राजनैतिक अस्तित्व मिटाना ही देश हित में होगा। इसके लिए जागों और बता दो सरकार की हम सोये नही है।
रवि शंकर यादव
बांग्लादेश विश्व के उन सबसे बड़े देशों में है जो लगातार शरणार्थियों को पैदा कर रहे हैं। इसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ रहा है। भारत में बांग्लादेशी मुसलमानों का आसानी से लगातार घुसपैठ होते रहने का मुख्य कारण भारत-बांग्लादेश की 4096 की.मी. लम्बी साझी सीमा है, राज्यवार स्थिति कुछ इस प्रकार पश्चिम बंगाल-2217 कि.मी., असम-262 कि.मी., मेघालय 443, कि.मी., त्रिपुरा-858 कि.मी., मिजोरम-318 कि.मी.। असम के पूर्व राज्यपाल ले. जनरल अजय सिंह ने कहा था कि 6000 बांग्लादेशी अवैध रूप से प्रतिदिन सीमा पार कर भारत में प्रवेश करते हैं। यह अवैध घुसपैठ प्रतिवर्ष लगभग 22 लाख होती है। बांग्लादेश की ओर से जारी अनियंत्रित और अवैध घुसपैठ ने पिछले कुछ दशकों से भारत के खिलाफ जनसांख्यिकीय हमले का रूप धारण कर लिया है। यह भारत की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा दोनों के लिए एक बड़ा खतरा है। इन घुसपैठियों में मुस्लिम और हिन्दुओं का अनुपात 4 1 का है। पिछले दस वर्षों में भारत बांग्लादेश सीमा के दोनो और करीब 3000 से ज्यादा मस्जिदें और मदरसे उग आए हैं। यहां कट्टरपंथीे मुसलमानों के बीच इस्लामिक विचारधारा का खुलेआम प्रचार किया जा रहा है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक समय आने पर पाकिस्तानी एजेंसियां इन कट्टरपंथियों का इस्तेमाल पूर्वोत्तर को काटने के लिए कर सकती हैं। आज देश के सभी राज्य इनकी की गिरफ्त में हैं। मुस्लिम घुसपैठियों की वजह से इन राज्यों में इस्लामीकरण का खतरा उत्पन्न हो गया है। आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन (आसू) जैसे सशक्त क्षेत्रीय संगठनों के द्वारा समय-समय पर किए गए विरोध के बावजूद इसका अब तक पर्याप्त समाधान होना शेष ही है। घुसपैठ से निपटने के लिए एक अधिनियम बनाया गया, अवैध प्रवासी (अधिकरणों द्वारा अवधारणा) अधिनियम, (आई.एम.डी.टी.) 1983 जिसे केंद्र तथा असम के सशक्त संगठन आसू के मध्य हुए असम समझौता 1984 के तहत पारित किया गया। असम को छोड़कर देश के बाकी राज्यों में विदेशी नागरिकों की पहचान कर देश निकाला देने का प्रावधान है। अवैध प्रवासी अधिनियम के अंतर्गत नागरिकता साबित करने का भार शिकायतकर्ता पर होता है जबकि विदेशी विषयक अधिनियम के अंतर्गत यह भार खुद उस व्यक्ति के ऊपर होता है जिसके ऊपर संदेह दर्ज है। यह अधिनियम 25 मार्च 1971 या उसके बाद आए बांग्लादेशी नागरिकों पर लागू होता है। विदेशी नागरिकों के पहचान तथा निष्कासन के संदर्भ में उक्त कानून अत्यधिक लचीला तथा कमजोर होने के कारण अवैध घुसपैठ रोकने की बजाय उस में मददगार ही साबित हुआ है। फलस्वरूप असम के कई जिलों की जनसंख्या का स्वरूप ही बदल गया है। जहां मूल असमी नागरिक बहूतायत में थे, वे अल्प संख्यक बन कर रह गए। अधिनियम अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त करने में अक्षम साबित हुआ। सन् 2003 में राज्य की असम गण परिषद सरकार ने केंद्र से इस अधिनियम को निरस्त करने की सिफारिश भी की थी लेकिन केंद्र ने राज्य सभा में अल्प मत का हवाला देकर ऐसा कर सकने में अक्षमता जाहिर की। जब कि केंद्र सरकार यदि चाहती तो दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर इस अधिनियम को निरस्त कर सकती थी। जैसा कि पोटा मामले में किया गया था। ज्ञातव्य है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने स्वयं यह बयान दिया था कि असम में 30 लाख से अधिक अवैध बांग्लादेशी विदेशी नागरिक रहते हैं। किन्तु कुछ दिनों बाद ही अल्पसंख्यकों के भड़क उठने के डर से उन्हें सफाई देनी पड़ी कि उक्त आंकड़ा केंद्र द्वारा प्रयोजित रिपोर्ट पर आधारित था। असम गण परिषद से लोक सभा के निर्वाचित सदस्य श्री सर्वानंद सोनोवाल द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायलय की तीन सदस्यीय खंडपीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश श्री आर.सी. लाहोटी, जी.पी. माथुर तथा श्री पी.के. बाल सुब्रमण्यम शामिल थे, ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा, ”अवैध प्रवासी बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर असम से बाहर निकालने में उक्त अधिनियम बहुत बड़ी बाधा है। सन् 2001 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल के दस, असम के तीन, मेघालय के तीन और त्रिपुरा के दो जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में 50 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि हुई है। कुछ क्षेत्र और जिले तो ऐसे हैं जहां दस वर्षों में जनसंख्या की वृध्दि की दर 200 प्रतिशत रही है। जबकि देश में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि 32.6 प्रतिशत ही रही है। मुस्लिम आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण इन जिलों में रहने वाले मूल निवासियों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है। पलायन कर चुके इन परिवारों के आंकड़े केंद्र और राज्य सरकार दोनों के पास हैं। लेकिन इनको जारी नहीं किया गया है। सिलीगुड़ी कॉरीडोर में इनका जबर्दस्त जमावड़ा है। यहां ऐसा नहीं है कि इन घुसपैठियों का इस्तेमाल सिर्फ बाहरी ताकतें ही कर रही हैं। भारत के अंदर कुछ राजनीतिक दल इनका लाभ उठाते हैं। इन घुसपैठियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण भारत के सीपीएम शासित राज्य हैं। इन राज्यों में घुसपैठियों का स्वागत राजनैतिक लाभ के लिए खुले हाथों से किया जाता है। यह दरियादिली चुनावों के साथ जोर पकड़ती है। कम्युनिस्टों को जिन क्षेत्रों में हार की आशंका होती है, उन क्षेत्रों में स्वतरू घुसपैठ बढ़ जाती है। पहचान पत्र तुरंत तैयार हो जाते हैं। राजनीतिक पार्टियां इनका खूब इस्तेमाल करती हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्तर पर इन घुसपैठियों को बाहर निकालने की कोशिश नहीं होती है और अगर कभी कोशिश की भी गई तो उसका विरोध किया जाता है। पश्चिम बंगाल का करीब 2,200 कि.मी. लंबा क्षेत्र बांग्लादेशी सीमा से लगा है। यहां 282 विधानसभा सीटों में 52 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का फैसला पूरी तरह से बांग्लादेशी घुसपैठिए करते हैं। जबकि अन्य 100 सीटों पर हार-जीत में ये निर्णाक भूमिका अदा करते हैं। आज देश के बड़े शहरों में इन घुसपैठियों की बस्तियां हैं। दिल्ली पुलिस के अनुसार, अकेले दिल्ली में 13 लाख बांग्लादेशी हैं। दिल्ली में सीलमपुर, जामा मस्जिद और यमुना बाजार आदि इनके गढ़ बन चुके हैं। बिहार के पूर्णियां, अररिया, किशनगंज, कटिहार आदि जिलों में इनकी जनसंख्या काफी ज्यादा है। यानी ये देश के भीतर तक फैले हैं। जहाँगीर खाँ के मुगलस्तान रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बांग्लादेश ने एक नक्शा प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार पूर्वि और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भारत क्षेत्र में घुसपैठ आदि के द्वारा एवं मुस्लीम जन्संख्या बढाकर इसे एक नया इस्लामी राज्य बना देना है। इसमें पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा और मध्य प्रदेश के क्षेत्र को सम्मिलित करने कि योजना है। इसलिये इन उपर्युक्त क्षेत्रो में बांग्लादेशी मुसलमानों का घुसपैठ प्रमुखता से है। इनकी बस्तियां भारतीय सीमाओं के भीतर बनी पाकिस्तानी सैन्य छावनियों के समान हैं। ये घुसपैठी सीमा पार से खतरनाक हथियारों के साथ देश में आतंक फैलाने के उद्देश्य से आते हैं। ये अपने साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए बड़ी मात्रा में नकली नोट भी लाते हैं। इनका प्रयोग आईएसआई जैसी एजेंसियां निर्बाध रूप से कर रही हैं। धर्म और राजनीति इस्लाम रुपी सिक्के के दो पहलू हैं। यह कथन आज भी उतना ही सही है जितना पहले था। यदि बांग्लादेशी मुसलमान अपने धर्मप्रेरित राजनैतिक उद्देश्यों के लिये भारत में घुसपैठ करते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि इस्लाम वस्तुतरू प्रारम्भ से ही एक राजनैतिक आन्दोलन रहा है। लेकिन वोट बैंक बनाने के चक्कर में कांग्रेस सहित तथाकथित धमनिरपेक्ष राजनीतिक दल एवं स्थानीय नेताओें ने अवैध बांग्लादेशियों को भारत में खासकर असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा एवं बिहार आदि राज्यों में उन्हें राशन कार्ड बनवाने व मतदाता सूची में शामिल करवाते हुए उन्हें वैधता प्रदान करने का कार्य किया है। वहीं स्थानीय लोगों ने सस्ते मजदूर और नौकर के मोह में पड़कर इन घुसपैठियों को अपने यहां रखकर स्वयं गंभीर संकट का दावत दे रहें है। 1971 के बाद से अब तक जिस तरह हमारे देश में बांग्लादेशी घुसपैठ हुई है उससे अद्वितीय राष्ट्रीय पहचान पत्र को लेकर एक शंका उत्पन्न होती है। क्योंकि यदि जनसंख्या रजिस्टर भरते समय बांग्लादेशी घुसपैठी प्रश्न 11 का उत्तर देते समय अपनी राष्ट्रीयता ‘भारतीय’ घोषित करता है तो उससे राष्ट्रीयता के बाबत कोई प्रश्न नहीं किया जाएगा और ना ही कोई सबूत मांगा जाएगा। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाते समय बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान को लेकर सरकार के पास न कोई स्पष्ट नीति है और ना ही राजनीतिक इच्छाशक्ति। ऐसे में वैसे बांग्लादेशी जो भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में भारत का नागरिक हो जायेगे। इन दिनों पूरे भारत में जनगणना का काम बड़ी तेजी से चल रहा है। 2011 की इस जनगणना के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) भी तैयार किया जा रहा है। बताते चलें कि इस राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के आधार पर ही प्रत्येक व्यक्ति को एक अनूठी पहचान संख्या ‘यूआईडी’ जारी किया जाएगा। उसके बाद इसे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के डाटाबेस में जोड़ा जाएगा। सत्तापक्ष यूपीए (कांग्रेस) सरकार की मंशा इस बात से भी उजागर होती है कि महामहिम राष्ट्रपति ने भी अपने अभिभाषण में राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की चर्चा की लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ पर चुप्पी साध गईं। वहीं दूसरी तरफ वित्ता मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी अपने बजट भाषण में राष्ट्रीय पहचान पत्र के लिए 1900 करोड़ रुपए का बजट वित्ताीय वर्ष 2010-11 के लिए आवंटित कर दिया। कितनी विडम्बना की बात है कि एक तरफ सरकार देश की जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में अक्षम है, वहीं दूसरी तरफ अद्वितीय पहचान पत्र के लिए सरकार इतनी बड़ी राशि खर्च कर रही है। आखिर इसकी उपयोगिता क्या है? इसका जबाव इस योजना के अध्यक्ष नंदन नीलकेणी इस प्रकार देते हैं, ”इस पहचान से गरीब लोग भी देश के आर्थिक विकास में सहयोग करेंगे। साथ ही पहचान संख्या स्कूल में बच्चों के नामांकन दिलाने में मदद करेगी। इस योजना में कारपोरेट घरानों का भी हाथ है। क्योंकि एनपीआर के डाटा का सिर्फ सरकारी उपयोग ही नहीं होगा बल्कि उसका बैंकिंग, बीमा और एड कंपनियां भी उपयोग करेंगी। बंगाल के गवर्नर टी.वी. राजेश्वर (18.3.96) एवं असम के गवर्नर एस. के. सिन्हा (1998) और अजय सिंह (15.5.2005) अपनी रिपोर्टं में घुसपैठ से उत्पन्न राजनैतिक समस्याओं एवं भारत की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित किया था मगर मुस्लिम वोट बैंक ने इन देशद्रोही गतिविधियों को भी उपेक्षित कर दिया। जबकि वास्तव में बांग्लादेशी घुसपैठ को, पार्टी हित से उपर उठकर, राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखण्डता की् दृष्टि से सोचना होगा और इस देशद्रोही गतिविधियों को समाप्त करने में हि भारत का हित है। पाकिस्तान में विदेशियों को घुसपैठ की 2 से 10 साल की सजा है। सऊदी अरेबिया ने 1994-1995 में एक लाख घुसपैठियों को निकाला जिसमें 27588 बांग्लादेशी मुस्लमान थे स्वयं बांग्लादेश ने 1,92,274 रोहिंगा वर्मी को अपने देश से निकाल बाहर किया चुका फिर भारत में रह रहे बांग्लादेशी को क्यों नही निकाला जा सकता। क्या मुस्लीम वोट बैंक राष्ट्रीय सुरक्षा से भी अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है? यदि हाँ ! तो देशद्रोहियों का वर्चस्व एवं राजनैतिक अस्तित्व मिटाना ही देश हित में होगा। इसके लिए जागों और बता दो सरकार की हम सोये नही है।
रवि शंकर यादव
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