कश्मीर समस्या गलती किसकी
कश्मीर समस्या गलती किसकी
कश्मीर में शंाति बहाली के लिए अनुच्छेद 370 निरस्त करना जरूरी है।
कश्मीर रह-रह कर विगत 6 दशकों से अधिक समय से आग की तरह जल रहा है। नब्बे के दशक में (1990-92) तक इस राज्य में स्थिति इतनी विस्फोटक होगी कि वहाॅ के अल्पसंख्यक हिन्दुओं (कश्मीरी पंडित) को राज्य से पलायन करना पड़ा जिनकी सख्या लगभग 4 से 5 लाख के बीच बतायी जाती है। विगत 20 वर्षों से अपने ही देश में दर-दर भटक (शणार्थी बनकर) रहें है। 90 से अब तक इनका हल लेने वाला कोई नही है। देश पंथनिरपेक्ष दल उन हिन्दुओं के प्रति कोई सहानुभूति वक्त करने को तैयार नही है, क्योंकि देश में मुस्लिम वोट बैंक का मामला है। इस राज्य में कट्टरपंथी एवं आतंकियों ने मिलकर यह घोषण तक कर चुके है जो व्यकित जम्मू कश्मीर में भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहरेंगा उसे गोली मार दी जायेगी। उस समय केवल राजभवन एवं सुरक्षाबलों के शिविरों को छोडकर अन्य स्थानों पर इस का असर पूर्णरूप से दिखा रहा था। तभी भारतीय जनता पार्टी के डाॅ मुरलीमनोहर जोशी ने खुलेआम घोषण की 26 जनवरी 1992 को कश्मीर के श्रीनगर लाल चैक में तिंरगा जरूर लहरायेंगा। आतंकियों ने इस बात पर 10 लाख का इनाम रख की डाॅ जोशी को तिरंगा फहरानंे से पहले जो व्यक्ति गोली मार देगा उसे दस लाख दिया जायेगा और यदि डाॅ जोशी तिरंगा फहरानें सफल होते हैं तो उन्हें 10 लाख दिया जायेगा। डाॅ जोशी डरें नही और अपनी बात पर अटल रहें, लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव उस समय जोशी को रोका तो नही लेकिन सुरक्षा से साफ इकार कर दिया और कहाॅ की डाॅ जोशी की सुरक्षा की कोई गारटी नही है। फिर भी कान्याकुमारी से यात्रा करतें हुए 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर पहुचें और लाल चैक पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराकर देश को बता दिया कि ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा उॅचा रहें हमारा’ और देश के प्रत्येक नागरिक को संदेश दिया की कश्मीर को भारत से अलग नही किया जा सकता। ब्रिटिश संसद द्वारा पारित ‘भारतीय स्वातय अधिनियम’ के प्रावधानों के अनुसार जम्मू कश्मीर के तत्कलीन शासक महाराज हरिसिंह द्वारा भारतीय जन संघ में विलय हेतु 26-27 अक्टूबर 1947 को निर्धारित विलय प्रपत्र पर हस्ताक्षर करनें के उपरान्त वह राज्य (जम्मू कश्मीर) देश का अभिन्न अंग बन गया, लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय सत्ता की ढुलमुल नीति, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जनमत संग्रह के प्रस्ताव और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 (संक्रमणकालीन अस्थायी अनुच्छेद) आदि के कारण जम्मू कश्मीर विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया। यहाॅ तक की स्वतंत्रता के बाद उस राज्य में प्रवेश के लिए ‘परमिट’ लेने की व्यवस्था कर दी गयी, डॉ मुकर्जी जम्मू काश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू काश्मीर का अलग झंडा था, अलग संविधान था, वहाँ का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री कहलाता था, जिसके विरूद्ध जन संघ (वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी) ने अगस्त 1952 को आन्दोलन छेड़ दिया और नारा दिया की एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगें। आन्दोलन को धार देने के लिए जन संघ संस्थापक के डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिना ‘परमिट’ राज्य प्रवेश करने का प्रयास किया, जिस पर जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला (डाॅ फारूक अब्दुल्ला के पिता) ने तत्काल डाॅ मुखर्जी को गिरफ्तार कर कारागार में डाल दिया, 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। वे भारत के लिए शहीद हो गए, और भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया जो हिन्दुस्तान को नई दिशा दे सकता था। यह जम्मू कश्मीर के भारतीय में पूर्ण विलय के लिए दिया गया किसी भारतीय का पहला एवं महत्वपूर्ण बलिदान था। जम्मू कश्मीर के लिए अलग से संविधान बनाया गया जो 1956 से वहाॅ लागू है। पूरे देश में जम्मू कश्मीर ही ऐसा एकमात्र जहाॅ अलग कानून लागू है, जिसके अनुसार जम्मू कश्मीर विधानसभा के विधायकों का कार्यकाल 6 वर्ष रखा गया, जबकि देश के अन्य राज्यों में 5 वर्ष है। जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा भी नियत किया गया । भारतीय संसद द्वारा पारित कोई भी कानून जम्मू कश्मीर में तब तक नही लागू हो सकता जब तक की वहाॅ की विधानसभा उसे पास न कर दें। (अस्थायी एवं संक्रमणकलीन) अनुच्छेद 370 (भारतीय संविधान में इसका यही विश्लेषण लिखा है) जिसको निरस्त करनें की मांग देश के पंथनिरपेक्षतावादियों द्वारा ‘साम्प्रदायिक’ घोषित कर दिया जाता है। कितनी विडम्बना की बात है कि जम्मू कश्मीर को भारत में पूर्ण विलय की बात करनें वाले को ‘साम्प्रदायिक’ करार दिया जाता है। लेकिन जो पकिस्तान जिन्दाबाद का नारा लगाते हैं। जम्मू कश्मीर में अलगावादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस जब चाहता है घाटी में बंद आयोजित कर देता है, तथा पकिस्तानी झण्डे फहरवा देते है लेकिन ये पंथनिरपेक्ष कहलतें है। जम्मू कश्मीर में शांति के लिए सबसे जरूरी हैं कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करके भारत का अभिन्न अंग बनाया जाय, निर्वासित कश्मीरी पंडितों को पुनः वहाॅ ससम्मान और सुरक्षित बसाया जाय। कोई भी भारतीय नागरिक कश्मीर में जमीन खरीदनें की सुविधा प्रदान की जाये इससे मुस्लिमबहुलता (कट्टरपंथी) से भी मुक्ति मिल सकेगी तथा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन सकेगा।अपने विचार हमें जरूर भेजेः
रवि शंकर यादव
ई मेल aajsamaj@in.com
प्रिय पाठकों हमनें सभी तथ्यों को लिखनें अपनी अनुसार लिखा है, यदि कोई गलती होगी हो तो उसकें लिए हम क्षमा प्रार्थी है।
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