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सोनिया का सच ? (भाग-1)

सोनिया गंाधी का सच? (भाग-1)
सानिया माइनो (सोनिया  गांधी) का सच! की पहली कडी, अंग्रेजी में इसके मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में - अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित हुआ था । अब भूमिका बाँधने की आवश्यकता नहीं है और समय भी नहीं है, हमें सीधे मुख्य मुद्दे पर आ जाना चाहिये। भारत की खुफिया एजेंसी रॉ, जिसका गठन सन 1968 में हुआ, राॅ ने विभिन्न देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी, इसराईल की मोस्साद और फ्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये और एक नेटवर्क खडा किया। इन खुफिया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान करने में सक्षम थीं। लेकिन रॉ ने इटली की खुफिया एजेंसियों से इस प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि रॉ के वरिष्ठ जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफिया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था । सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ 1980 में संजय की मौत के बाद। रॉ की नियमित ब्रीफिंग में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे (ब्रीफिंग कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे सिर्फ काँग्रेस महासचिव थे। राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों। रॉ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी अनुमति देने को कह दिया था, फिर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफिंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे। उन बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन खुफिया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ? या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी। राजीव गाँधी ने सानिया माइनो (सोनिया  गांधी ) से सन् 1968 में विवाह किया था, और हालांकि रॉ मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे। अन्ततः दस वर्षों से भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफिया संस्था से गठजोड़ कर लिया। क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सानिया माइनो (सोनिया गंाधी) ने। सीधी सी बात यह है कि वह इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं। एक मासूम गृहिणी, जो राजनैतिक और प्रशासनिक मामलों से अलिप्त हो और उसके इटालियन खुफिया एजेन्सियों के गहरे सम्बन्ध हों यह सोचने वाली बात है, वह भी तब जबकि उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी (वह उन्होंने बहुत बाद में ली) । प्रधानमंत्री के घर में रहते हुए, जबकि राजीव खुद सरकार में नहीं थे। हो सकता है कि रॉ इसी कारण से इटली की खुफिया एजेंसी से गठजोड़ करने मे कतरा रहा हो, क्योंकि ऐसे किसी भी सहयोग के बाद उन जासूसों की पहुँच सिर्फ रॉ तक न रहकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हो सकती थी । जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब सुरक्षा अधिकारियों ने इंदिरा गाँधी को बुलेटप्रूफ कार में चलने की सलाह दी, इंदिरा गाँधी ने अम्बेसेडर कारों को बुलेटप्रूफ बनवाने के लिये कहा, उस वक्त भारत में बुलेटप्रूफ कारें नहीं बनती थीं इसलिये एक जर्मन कम्पनी को कारों को बुलेटप्रूफ बनाने का ठेका दिया गया। जानना चाहते हैं उस ठेके का बिचैलिया कौन था, वाल्टर विंसी, सानिया माइनो (सोनिया  गांधी) की बहन अनुष्का का पति! रॉ को हमेशा यह शक था कि उसे इसमें कमीशन मिला था, लेकिन कमीशन से भी गंभीर बात यह थी कि इतना महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी कार्य उसके मार्फत दिया गया। इटली का प्रभाव सानिया माइनो उर्फ सोनिया गंाधी दिल्ली तक लाने में कामयाब रही थीं, जबकि इंदिरा गाँधी जीवित थीं। दो साल बाद 1986 में ये वही वाल्टर विंसी महाशय थे जिन्हें एसपीजी को इटालियन सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने का ठेका मिला, और आश्चर्य की बात यह कि इस सौदे के लिये उन्होंने नगद भुगतान की मांग की और वह सरकारी तौर पर किया भी गया। यह नगद भुगतान पहले एक रॉ अधिकारी के हाथों जिनेवा (स्विटजरलैण्ड) पहुँचाया गया लेकिन वाल्टर विंसी ने जिनेवा में पैसा लेने से मना कर दिया और रॉ के अधिकारी से कहा कि वह ये पैसा मिलान (इटली) में चाहता है, विंसी ने उस अधिकारी को कहा कि वह स्विस और इटली के कस्टम से उन्हें आराम से निकलवा देगा और यह कैश चेक नहीं किया जायेगा। रॉ के उस अधिकारी ने उसकी बात नहीं मानी और अंततः वह भुगतान इटली में भारतीय दूतावास के जरिये किया गया। इस नगद भुगतान के बारे में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.जी.देशमुख ने अपनी हालिया किताब में उल्लेख किया है, हालांकि वह तथाकथित ट्रेनिंग घोर असफल रही और सारा पैसा लगभग व्यर्थ चला गया। इटली के जो सुरक्षा अधिकारी भारतीय एसपीजी कमांडो को प्रशिक्षण देने आये थे उनका रवैया जवानों के प्रति बेहद रूखा था, एक जवान को तो उस दौरान थप्पड़ भी मारा गया। रॉ अधिकारियों ने यह बात राजीव गाँधी को बताई और कहा कि इस व्यवहार से सुरक्षा बलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और उनकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसे में खतरे में पड़ सकती है, घबराये हुए राजीव ने तत्काल वह ट्रेनिंग रुकवा दी,लेकिन वह ट्रेनिंग का ठेका लेने वाले विंसी को तब तक भुगतान किया जा चुका था । राजीव गाँधी की हत्या के बाद तो सोनिया गाँधी पूरी तरह से इटालियन और पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों पर भरोसा करने लगीं, खासकर उस वक्त जब राहुल और प्रियंका यूरोप घूमने जाते थे। सन् 1985 में जब राजीव सपरिवार फ्रांस गये थे तब रॉ का एक अधिकारी जो फ्रेंच बोलना जानता था, उनके साथ भेजा गया था, ताकि फ्रेंच सुरक्षा अधिकारियों से तालमेल बनाया जा सके। लियोन (फ्रांस) में उस वक्त एसपीजी अधिकारियों में हड़कम्प मच गया जब पता चला कि राहुल और प्रियंका गुम हो गये हैं। भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को विंसी ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है, दोनों बच्चे जोस वाल्डेमारो के साथ हैं जो कि सोनिया की एक और बहन नादिया के पति हैं। विंसी ने उन्हें यह भी कहा कि वे वाल्डेमारो के साथ स्पेन चले जायेंगे जहाँ स्पेनिश अधिकारी उनकी सुरक्षा संभाल लेंगे। भारतीय सुरक्षा अधिकारी यह जानकर अचंभित रह गये कि न केवल स्पेनिश बल्कि इटालियन सुरक्षा अधिकारी उनके स्पेन जाने के कार्यक्रम के बारे में जानते थे। जाहिर है कि एक तो सोनिया गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अहसानों के तले दबना नहीं चाहती थीं, और वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर विश्वास नहीं करती थी। इसका एक और सबूत इससे भी मिलता है कि एक बार सन 1986 में जिनेवा स्थित रॉ के अधिकारी को वहाँ के पुलिस कमिश्नर जैक कुन्जी ने बताया कि जिनेवा से दो वीआईपी बच्चे इटली सुरक्षित पहुँच चुके हैं, खिसियाये हुए रॉ अधिकारी को तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था । जिनेवा का पुलिस कमिश्नर उस रॉ अधिकारी का मित्र था, लेकिन यह अलग से बताने की जरूरत नहीं थी कि वे वीआईपी बच्चे कौन थे । वे कार से वाल्टर विंसी के साथ जिनेवा आये थे और स्विस पुलिस तथा इटालियन अधिकारी निरन्तर सम्पर्क में थे जबकि रॉ अधिकारी को सिरे से कोई सूचना ही नहीं थी, है ना हास्यास्पद लेकिन चिंताजनक... उस स्विस पुलिस कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि तुम्हारे प्रधानमंत्री की पत्नी तुम पर विश्वास नहीं करती और उनके बच्चों की सुरक्षा के लिये इटालियन एजेंसी से सहयोग करती है। बुरी तरह से अपमानित रॉ के अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के गुट में तेजी से यह बात फैल गई थी कि सानिया माइनो उर्फ सोनिया गंाधी भारतीय अधिकारियों, भारतीय सुरक्षा और भारतीय दूतावासों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती हैं, और यह निश्चित ही भारत की छवि खराब करने वाली बात थी। राजीव की हत्या के बाद तो उनके विदेश प्रवास के बारे में विदेशी सुरक्षा एजेंसियाँ, एसपीजी से अधिक सूचनायें पा जाती थी और भारतीय पुलिस और रॉ उनका मुँह देखते रहते थे। (ओट्टावियो क्वात्रोची के बार-बार मक्खन की तरह हाथ से फिसल जाने का कारण समझ में आया ?) उनके निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज सीधे पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के सम्पर्क में रहते थे, रॉ अधिकारियों ने इसकी शिकायत नरसिम्हा राव से की थी, लेकिन जैसी की उनकी आदत (?) थी वे मौन साध कर बैठ गये। संक्षेप में तात्पर्य यह कि, जब सानिया माइनो (सोनिया गंाधी) एक गृहिणी होते हुए भी वे गंभीर सुरक्षा मामलों में अपने परिवार वालों को ठेका दिलवा सकती हैं, राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी के जीवित रहते रॉ को इटालियन जासूसों से सहयोग करने को कह सकती हैं, सत्ता में ना रहते हुए भी भारतीय सुरक्षा अधिकारियों पर अविश्वास दिखा सकती हैं, तो अब जबकि सारी सत्ता और ताकत उनके हाथों मे है, वे क्या-क्या कर सकती हैं, बल्कि क्या नहीं कर सकती । हालांकि मैं भारत की बहू हूँ और मेरे खून की अंतिम बूँद भी भारत के काम आयेगी आदि वे यदा-कदा बोलती रहती हैं, लेकिन यह असली सोनिया गंाधी नहीं है । समूचा पश्चिमी जगत, जो कि जरूरी नहीं कि भारत का मित्र ही हो, उनके बारे में सब कुछ जानता है, लेकिन हम भारतीय लोग सानिया माइनो (सोनिया गंाधी) का सच? (भारत भूमि पर जन्म लेने वाला व्यक्ति चाहे कितने ही वर्ष विदेश में रह ले, स्थाई तौर पर बस जाये लेकिन उसका दिल हमेशा भारत के लिये धड़कता है, और इटली में जन्म लेने वाले व्यक्ति का....)

रवि शंकर यादव
मोबाइल 9044492606
ई मेल aajsamaj@in.com
www.aajsamaj.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. संघी हिन्दुवत्व के साथ हिन्दू नहीं

    मालेगांव से लेकर अजमेर शरीफ तक की आतंकी घटनाओ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम आने व गिरफ्तार कर जेल जाने से बौखला कर आज देश में धरना प्रदर्शन हुआ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत जी के नेतृत्व संघ के समस्त अनुवांशिक संगठनो ने धरना प्रदर्शन किया। जानकारों के अनुसार इस धरना प्रदर्शन में लगभग 500 के आसपास संघी शामिल हुए। जिससे यह साबित होता है कि संघी हिन्दुवत्व के साथ हिन्दू मतावलंबी नहीं हैं। मोहन भागवत ने केंद्र में कांग्रेसी सरकार के इशारे पर संघ के नेताओं को फर्जी फ़साने की बात कही। वहीँ श्री भागवत ने संघ का मुसलमानों से कोई बैर नहीं की बात कहकर अपनी पुरानी बगुला भगत वाली छवि को प्रदर्शित किया। श्री मोहन भागवत ने यह भी कहा संघ का हिंसा में कोई विश्वास नहीं है लेकिन जब वह यह कहते हैं तब वह विस्मृति के शिकार होते हैं। गाँधी की हत्या, सिखों का नरसंहार, मालेगांव से अजमेर शरीफ की आतंकी घटनाएं भूल जाते हैं। संघ का इतिहास रहा है कि यह अपनी स्थापना काल से ही जर्मन नाजी विचारधारा से ओत-प्रोत रहा है। अगर दूसरे मतावलम्बियों से उनका बैर नहीं है तो वह धर्म निरपेक्ष भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों बनाना चाहते हैं। हिन्दू राष्ट्र बनाने का अर्थ यह है कि दूसरी संस्कृतियों को मानने वाले लोगों के ऊपर अपने धर्म की सुपरियारिटी को लागू करना। बाबरी मस्जिद प्रकरण में 22-23 दिसम्बर 1949 की रात को मूर्ति रख दी गयी थी और अगर उनका दूसरे मतावलंबियों से बैर नहीं है तो बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को माने और बाबरी मस्जिद की जगह मस्जिद बनाने दे। पुराने इतिहास के आधार पर बदला लेने की प्रवित्ति संघ की प्रवित्ति है, यही काम हिटलर ने जर्मनी में किया था और उसकी चरम प्रणत्ति लाखो लोगों की गैस चम्बरों में हत्या से हुई थी। जिस समय मस्जिद बनी होगी उस समय के शासन सत्ता के कानून के हिसाब से जायज होगी। उन सम्राटो ने मंदिरों के लिए भी जो सुविधाएं दी थी उन सुविधाओं का उपभोग उनके महंतों ने किया था और आज भी बहुत सारे मंदिरों के पास जमीनें मुस्लिम सम्राटो के द्वारा दी गयी जमीनें ही मौजूद हैं। कांग्रेस के ऊपर आरोप लगाना उचित नहीं है। हाँ, ये जरूर है के कांग्रेस के अन्दर हजारो संघी प्रष्टभूमि के नेतागण मौजूद हैं जो कांग्रेस के धर्म निरपेक्ष सवरूप को ही बदल के रख दिए हैं।
    अच्छा यह होगा श्री मोहन भागवत जी देश के निरपेक्ष स्वरूप को बनाये व बचाए रखने के लिए आप संघ के पदाधिकारियों को निर्देश दें कि वह आतंकी घटनाओ में हिस्सा लेना छोड़ कर इस देश को बहुभाषीय, बहुजातीय, बहुधार्मिक देश के रूप में विकसित होने दें। जिससे यह देश एक बगिया की तरह विकसित हो जिसमें तरह-तरह के फूल हों और तरह-तरह की खुशबू हो। एक माली की तरह हम और आप इस देश को एक चमन की तरह विकसित करें।

    सुमन
    लो क सं घ र्ष !

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    1. aap mahashay ye badle ki pravritti k baare me na bolen to hi acha h, apmaan seh kar baith jana murkhta kehlaati hai, apne haq k liye agar abhi nhi khade hue to fir se gulaami jhelni padegi, jaisa ki gandhi-nehru ne hame bana kar chhoda hai, aur rahi ram mandir ki baat wo to har haal me banna chaiye, agar ye kattar soch hai to wahi sahi. hum apna adhikaar dharm-nirpekshta k naam par aur bali nahi hone denge..
      sangh ki baat aap na karein to hi acha hai, aap ko pata bhi nahi k sangh ka ek muslim wing bhi hai, jo kashmir mudde par achi pakad rakhne wale aur kuch samajhdaar musalmano k sath le kar bana hua hai..

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  2. aap ko pata hona chaiya ki masjid me char minar hoti hai aur pani se ahth dhone ke liya bhi intjam hota hai, jo ki ram mandir me nahi tha usa sirf badri dhacha kaha jata tha. dusra masji kabi bhi vivadit jamin per nahi hoti hai. tisra court ne bhi 2 bhag mandir to de diya ab kya chaiya

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  3. http://blog.sureshchiplunkar.com/2007/08/blog-post_07.htmlयह आलेख मूल रूप से सुरेश चिप्लुन्कर जी का लिखा हुआ है अच्छा होता आप उनका नाम और लिंक साथ में देते | इतने शानदार लेख को प्रचारित करने के लिए आपका साधुवाद आपको धन्यवाद | साथ ही यदि मूल लेखक का नाम और लिंक साथ में देते तो शायद ज़्यादा अच्छा लगता | जै हिंद , वंदे मातरम http://blog.sureshchiplunkar.com/2007/08/blog-post_07.html

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  4. लेखक को शानदार लेख लिखने के लिए धन्यवाद्
    www.indiafun.co.in

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